भगतसिंग..सिर्फ आदर्श नहीं, दुनिया है मेरी!
शहीद भगतसिंग ( २८ सितम्बर १९०७ (कुछ इतिहासकारों के मुताबिक २७ सितम्बर १९०७) – २३ मार्च १९३१ ).
१० साल की उम्र रही होगी जब इस महान क्रांतिकारी नेता की पहली पहचान इतिहास के पन्नों में हुई.तब से लेकर आज तक २ दशक से ज्यादा वक्त गुजर गया और इस क्रांतिकारी नेता का प्रभाव और उनकी विचारधारा में विश्वास इतना गहरा होता गया की मुझे दुनिया की कोई विचारधारा तो दूर की बात खुद भगवान जैसी किसी शक्ति के ऊपर ये हस्ती दिखाई देने लगी.
भगवान या उस सर्वशक्तिमान इश्वर से ऊपर इसीलिए क्योंकि भगतसिंग सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं एक सोच है,एक विचारधारा आत्यंतिक राष्ट्रवाद और मानवता की, विवेकशीलता और निडरता इतनी की खुद भगवान ने बनाई दुनिया में खामियाँ और दुःख देखकर फांसी के पहले मौत सामने रहते हुए भी ‘दुःख और तकलीफ की बनाई दुनिया के जिम्मेदार भगवान में ना तो मुझे यकीन है और ना मौत का खौफ’ जैसी निडर और सच्ची सोच इस देश को दी.
अक्सर देखा गया है की एक तरफ कोई नास्तिक बन जाता है तो खुद आत्मकेंद्रित बन कर दुनिया की सारी सुखों के मजे लेने में ही वक्त गुजरने लगता है. दूसरी तरफ भगवान पर विश्वास करनेवाले कोई भी हों अपने किये अच्छे कामों के बदले मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा सुप्त रूप से रखते ही है! वहीँ शहीद भगत सिंगजी ने ये सवाल हमेशा खड़ा किया ‘आप का सर्व शक्तिमान इश्वर गुनहगार को तब ही क्यों नहीं रोकता जब वो गुनाह कर रहा हो?’. मात्र इसी सवाल से ही इश्वर या उस सर्व शक्तिमान शक्ति की कमजोरी उन्होंने पूरी दुनिया को दिखाई.
लेकिन शहीद भगतसिंगजी ने ना तो मोक्ष प्राप्ती की आशा ना किसी स्वर्ग जैसी जिंदगी पे विश्वास कभी किया!उन्हीं के भाषा में कहें तो उन्होंने कहा जैसे ही मेरी सांसे फांसी के फंदे पर लटकते हुए रुकेंगी मेरा शरीर वहीँ ख़त्म हो जायेगा.सब कुछ वहीँ ख़त्म होगा.ऐसी सोच के बावजूद इतनी कम उम्र में उन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर के त्याग के किसी और मिसाल से कहीं अधिक शुद्ध बलिदान का अनूठा उदाहरण पेश किया, जिसमे कोई स्वार्थ था ही नहीं, और यही हिंद का असली रूप है, जब देश पे मर मिटने की बात आये तो हिंद के सपूत मौत को किस तरह हसते हुए गले लगाते है ये उन्होंने दुनिया को दिखाया खास तौर पर तब जब ये देश भुखमरी और दरिद्रता से जूझ रहा था. और दूसरी तरफ वो गद्दार है जो आज विदेशों में जाकर या कई लोग देश में रहकर अपने ही देश को गालियाँ देने में धन्यता मानते है.
मैंने आज तक न जाने कितने आंदोलन किये, कभी जीत मिली तो कभी सड़क के किनारे अकेले रह कर अनशन किया.लेकिन सच्चाई ये है की वो हर जीत, भ्रष्ट सिस्टिम से भिड़ने का हर जोश का श्रेय सिर्फ इस महान क्रांतिकारी को जाता है.भगतसिंग की विचारधारा के बिना कम से कम मेरे लिए तो संभव ही नहीं था ना आगे कभी होगा.
परिवार में भी कोई कुछ करता है तो ये सोच कर की परिवार का सदस्य आगे जाकर उसका सहारा बनेगा.लेकिन इस महान क्रांतिकारी ने बिना ये अपेक्षा किये की आनेवाली पीढ़ी उनके त्याग को याद करेगी या नहीं, उनके सपने पुरे करेगी या नहीं अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
इसीलिए मेरी जिंदगी में मुझे भगतसिंग के सपनों को पूरा करने की एकमात्र चाहत के अलावा जिंदा रहने की कोई वजह आज तक नहीं दिखी ना कभी दिखेगी.कठिन से कठिन क्षणों में इस महान क्रांतिकारी के मात्र नाम से ही मेरी सारी चिंताए मिट जाती है.मुझे किसी भगवान या सर्वशक्तिमान परमात्मा की जरुरत नहीं पड़ती.
भगतसिंग की तरह शहादत नसीब हो या जब तक जिंदा रहूँ उन के सपनों को पूरा करने की कोशिश करता रहूँ यही ख्वाहिश. इसीलिए ये क्रांतिकारी सिर्फ आदर्श नहीं, दुनिया है मेरी! उनकी जयंती पर उन्हें शतशः नमन….जयहिंद!
-अॅड.सिद्धार्थशंकर अ. शर्मा
संस्थापक अध्यक्ष- भारतीय क्रांतिकारी संघटना
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-Adv.Siddharthshankar Sharma
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