स्कूलद्वारा बच्चों की मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक दंड के खिलाफ कानून और न्यायालयीन निर्णयों की जानकारी
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स्कूलद्वारा बच्चों की मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक दंड के खिलाफ कानून और न्यायालयीन निर्णयों की जानकारी

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स्कूलद्वारा बच्चों की मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक दंड के खिलाफ कानून और न्यायालयीन निर्णयों की जानकारी-अवैध तथा गैरकानूनी स्कूल फीस के लिए या सामान्य स्कूल फीस के वसूली के लिए बच्चों की मानसिक प्रताड़ना या कुछ मामलों में शारीरिक दंड या उत्पीड़न जैसा घृणास्पद अपराध करना देशभर के कई स्कूलों के लिए आम बात है. कुछ मामलों में सजा के तौर पर बच्चों के शारीरिक दंड की शिक्षा दी जाती है जिसके परिणामस्वरुप मासूम बच्चों को कई गंभीर चोटें आने के मामले देशभर में दिखाई पड़ते है. ऐसी स्थिति में अभिभावक या सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए कौन से क़ानूनी प्रावधान है, बच्चों की मानसिक प्रताड़ना या शारीरिक दंड तथा उत्पीड़न जैसे घृणास्पद अपराधों के खिलाफ कौनसी क़ानूनी या संघटनात्मक रणनीती अपनानी चाहिए इस बारें क़ानूनी तौर पर आम अभिभावक तथा आम जनता में अज्ञान होने की वजह से संगठन की तरफ से यह लेख प्रकाशित किया जा रहा है.

निम्नलिखित क़ानूनी प्रावधान अभिभावक, सामाजिक कार्यकर्ताओं को विविध न्यायलय, खास तौर पर आयोग जैसे की बाल अधिकार संरक्षण आयोग आदि के समक्ष विविध प्रकरणों की पैरवी करते हुए जरुर उपयुक्त साबित होंगी ऐसा मुझे विश्वास है.

स्कुलोंद्वारा स्कूल फी के लिए या सामान्य स्कूल फी के वसूली के लिए बच्चों की मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक दंड तथा शारीरिक उत्पीड़न जैसे अपराध के खिलाफ क़ानूनी प्रावधान तथा न्यायालयी निर्णय-
१) अंतरराष्ट्रीय पहलू-
यह महत्वपूर्ण की कई अभिभावक, सामाजिक कार्यकर्ता या अधिवक्ता वर्ग भी सिर्फ राष्ट्रीय कानूनों का सन्दर्भ अपने मामलों की पैरवी करते समय ध्यान में रखते है. हालांकि अगर वे आंतर्राष्ट्रीय क़ानूनी प्रावधानों का भी सन्दर्भ न्यायालय तथा आयोगों के समक्ष पैरवी करते समय रखते है तो उनकी पैरवी कई गुना प्रभावशाली हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’-
संयुक्त राष्ट्र के आम सभाद्वारा २० नवम्बर १९८९ को ‘बाल अधिकार समझौता’ पारित किया गया जिसके द्वारा इसे संधि का रूप देकर दुनियाभर के देशों को हस्ताक्षर कर प्रतिबद्धता देने का अवसर दिया गया. भारत ने वर्ष १९९२ में संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’ पर हस्ताक्षर किये और बालकों के-
सामाजिक,
आर्थिक,
राजकीय तथा
सांस्कृतिक अधिकार,
बिना किसी धर्म, जाती, रंग, लिंग, भाषा के भेदभाव के सुनिश्चित करने पर प्रतिबद्धता मान्य की और इसी के बाद के कुछ सालों में देशमें कई बाल हित में कई कठोर कानून लाये गए जो इसके पहले दुर्लक्षित थे.

संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’ और महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय-
संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’ के महत्वपूर्ण प्रावधानों और उनकी प्रयोज्यता दिल्ली उच्च न्यायालयद्वारा बहुत ही विस्तृत तथा प्रभावी तरह से Parents Forum For Meaningful Vs Union Of India & Ors.- Writ Petition No.196/1998 अपने निर्णय में समाविष्ट किया गया था.

न्यायालयीन प्रकरण के तथ्य-
Parents Forum For Meaningful Vs Union Of India & Ors.- Writ Petition No.196/1998 इस याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह और न्यायमूर्ति डॉ.मुकुंदम शर्मा की खंडपीठ ने दिल्ली स्कूल शिक्षा नियम, १९७३ (Delhi School Education Rules, 1973) के नियम ३७ के उपनियम (१) (ii)  और (४) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४ (विधि के समक्ष समता का अधिकार) तथा अनुच्छेद २१ (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया.    

क्या था दिल्ली स्कूल शिक्षा नियम, १९७३ के नियम ३७ में?-
इस प्रकरण में अनुशासन के तौर पर छात्रों के खिलाफ अध्यापकों को-
नजरबंदी,
शारीरिक दंड (Corporal Punishment) जिसमे बेंत की छड़ी से १० बार तक हथेलीपर मारने जैसे सजा देने का अधिकार दिया गया था.

इसके खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायलयने संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’ और उसके बाद भारत ने हस्ताक्षर करने तथा अपने राष्ट्रीय शिक्षा निती में किया बदलाव का हवाला देकर आखिरकार उसे रद्द कर दिया.

उपरोक्त संयुक्त राष्ट्रद्वारा पारित ‘बाल अधिकार समझौता’ तथा Parents Forum For Meaningful Vs Union Of India & Ors.- Writ Petition No.196/1998 यह किसी भी याचिका के पैरवी करने के लिए अभिभावक, अधिवक्ता तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयुक है-
Parents Forum For Meaningful Vs Union Of India & Ors.- Writ Petition No.196/1998.Pdf

 

अतिरिक्त महत्वपूर्ण कानून-
१) किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, २०१५- The Juvenile Justice (Care And Protection Of Children) Act, 2015
उपरोक्त कानून की धारा ७५ के अनुसार (बच्चों के प्रति क्रूरता के लिए दंड)-
जो बच्चे का प्रभारी या वास्तविक नियंत्रक है उसके द्वारा बच्चे पर-
उपेक्षा कर अनावश्यक मानसिक या शारीरिक कष्ट,
प्रहार या हमला किया जाता है,
या परित्याग किया जाता है,
या उत्पीड़न किया जाता है,
या जानबूझकर बच्चे की उपेक्षा की जाती है या जो ऐसी उपेक्षा या करवाता है
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम ३ वर्ष की सजा तथा १ लाख रूपये जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा.

और इसी धारा के निम्नलिखित अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान देखिये-
और यदि ऐसी हिंसा या क्रूरता किसी संस्था के व्यक्तिद्वारा की जाती है जो उसकी सुरक्षा एवं देखभाल के उत्तरदायी है तो उसे अधिकतम ५ वर्ष की सजा तथा पाँच लाख रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा.

आम तौर पर यह प्रावधान बच्चों से क्रूरता करनेवाले हर अपराधी को लागू है लेकिन यहाँ हम शिक्षा संस्थाओंद्वारा क्रूरता की बात कर रहे हैं इसीलिए यह प्रावधान उन पर भी लागू किया जा सकता है जो कि बच्चो से क्रूरता करनेवालों के खिलाफ काफी कठोर प्रावधान है.

वाचकों को ज्ञात होगा की दिल्ली की स्पेशल कोर्टने एक संस्थाचालक के खिलाफ ७ साल के बच्ची के अभिभावकद्वारा फीससम्बन्धी शिकायत करनेपर उसे उसके नियमित कक्षा में उसे जाने से रोककर स्कुलके रिसेप्शनमें ५ घंटे तक बैठाये रखा. इसके खिलाफ ट्रायल कोर्टद्वारा २ महीनों का कारावास तथा २.५ लाख रूपये बच्ची को देने का आदेश दिया था. उस आदेश की प्रति निम्न्दर्षित लिंक से आप डाउनलोड कर सकते है-
Rajwant Kaur Romi Vs State.Pdf

२) निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ तथा आरटीई अधिनियम २००९-
इस अधिनियम के धारा १७ के अंतर्गत-
शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना पूर्णतः प्रतिबंधित है और,
जो कोई इस प्रावधान का उल्लंघन करता है वह उस व्यक्ति पर लागू सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पात्र होगा.

अभिभावकों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए रणनीती-
इस तरह से यदि दुर्भाग्यवश किसी बच्चे को स्कूलद्वारा शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना तथा क्रूरता जैसे अमानवीय कृत्यों का सामना करना पड़ें तो ऐसे प्रकरणों में अभिभावक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि उपरोक्त संदर्भीय क़ानूनी प्रावधानों तथा न्यायालयीन निर्णयों का जरुर इस्तेमाल करें और इस तरह के अपराध के खिलाफ तत्काल

१) शाररिक दंड तथा क्रूरता के लिए किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, २०१५ के धारा ७५ के तहत स्थानीय पोलिस थाने में शिकायत दर्ज करें और पुलिसद्वारा कारवाई न होने पर जन आन्दोलन या क़ानूनी तरीके जैसे स्थानीय न्यायलय में अपराधिक मुकदमा दाखिल करें या खुद पैरवी करनी हो तो विविध आयोगों में जैसे की बाल अधिकार संरक्षण आयोग आदि मे शिकायत याचिका दाखिल करें,

२) इसके साथ ही सम्बंधित अध्यापक के खिलाफ आरटीई अधिनियम २००९ की धारा १७ अंतर्गत उसे लागू सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए अलग से शिकायत उन नियमों में उल्लिखित सक्षम अधिकारी के समक्ष दाखिल करे और उसकेद्वारा तत्काल कारवाई न किये जाने के खिलाफ जन आन्दोलन या क़ानूनी तरीके जैसे उच्च न्यायलय में रीट याचिका या खुद पैरवी करनी हो तो विविध आयोगों में जैसे की बाल अधिकार संरक्षण योग आदि मे स्वयं शिकायत याचिका करें.

मासूम बच्चों को शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना तथा क्रूरता के खिलाफ क़ानूनी तौर पर कैसे लड़ना है इस विषय में आम जनता में बहुम कम जागरूकता होने की वजह से और केवल सही क़ानूनी रणनीती मालूम ना होने की वजह से कई प्रकरणों में अपराधी छुट जाते है, ऐसे में यह लेख आम जनता, अभिभावक तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए मददगार साबित होगा ऐसी आशा करता हूँ, जयहिंद!
ॲड.सिद्धार्थशंकर शर्मा
संस्थापक अध्यक्ष- भारतीय क्रांतिकारी संगठन

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