एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) या आपराधिक मुकदमा कैसे दर्ज करें? अदालत तथा आयोगसमक्ष प्रक्रियाओंसंबंधी मार्गदर्शन-(Hindi Article-Legal remedies for how to get FIR lodged through Courts & Commissions)-
एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) को दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (The Code Of Criminal Procedure 1973) के प्रावधानोंद्वारा मजिस्ट्रेट अदालतों के माध्यम से और संबंधित कानूनों के प्रावधानोंद्वारा विभिन्न आयोगों के माध्यम से दर्ज किया जा सकता है- (FIR (First Information Report) can be lodged through magistrate courts with Code of Criminal Procedure 1973 and through various commissions using related laws).
संगठन के पास उपलब्ध तथ्योंनुसार हमने ये देखा है कि पुलिस विभागद्वारा भारतीय दंड संहिता १८६० (Indian Penal Code 1860) के साथ-साथ अन्य मौजूदा कानूनों के तहत घोषित किए गए संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) के प्रथम दृष्टया तथ्य और सबूत होने के बावजूद एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) दर्ज करने के लिए कई लोगों को मना करने या अमर्यादित देरी की समस्या का सामना करना पड़ता है. दुर्भाग्यवश ऐसे अनुभव आने के बाद आम आदमी अपनी लड़ाई बिच में ही छोड़ देते है.
१.कानून का मुलभुत ज्ञान रखनेवाला आम आदमी खुद अदालत तथा विभिन्न आयोगों में अर्जी देकर एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करा सकता है?-
इसलिए संगठन ने इस लेख को प्रकाशित करने का फैसला किया है जिसमे दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (The Code Of Criminal Procedure 1973) के तहत महत्वपूर्ण कानूनी उपायों के बारे में जानकारी दी जायेगी और मेरा यह विश्वास है की कानून की मुलभुत जानकारी रखनेवाला आम आदमी भी आसानी से बिना वकील या अधिवक्ता नियुक्त किये, पुलिस प्रशासनद्वारा निष्क्रियता दिखाने के बाद भी अदालत या विविध आयोगों के समक्ष खुद पैरवी कर के एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) दर्ज करा सकते है.
२.कानूनी उपाय-
अगर पुलिस प्रशासन भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code 1860) के साथ-साथ अन्य मौजूदा कानूनों के तहत घोषित किए गए संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) के प्रथम दृष्टया तथ्य और सबूत होने के बावजूद एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) दर्ज करने में निष्क्रियता तथा अमर्यादित देरी कर रही है तो आम जनता के पास निम्नलिखित क़ानूनी विकल्प है-
i) संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (S.156 of The Code of Criminal Procedure 1973) की धारा १५६(३) के तहत निजी शिकायत दर्ज करना (वकील को नियुक्त कर के या उसके बिना),
ii) विभिन्न आयोगों और पुलिस शिकायत प्राधिकरण के समक्ष शिकायतें दर्ज करके.
*निम्नदर्शित लिंक के माध्यम से एकही पेज पर भ्रष्ट प्रणाली के खिलाफ लड़ने के लिए हमारे सभी शीर्ष कानूनी जागरूकता लेखों को जरुर पढ़ें-
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३.अपराधों के प्रकार-
उपर्युक्त २ कानूनी उपायों का विस्तृत विवरण देने से पहले, अपराध के प्रकारों को बहुत संक्षेप में समझाना महत्वपूर्ण है. अपराध के मुख्यतः निम्नलिखित २ वर्ग होते है-
i) संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence),
ii) असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable offence).
i) संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence)-
ये गंभीर अपराध होते हैं और पुलिस इसके खिलाफ तत्काल संज्ञान लेने के लिए बाध्य है जिसमें भारतीय दंड संहिता १८६० (Indian Penal Code 1860) के तहत लूट, चोरी, जबरन वसूली, अपहरण जैसे बहुत गंभीर अपराध शामिल हैं. इतना ही नहीं कई अन्य कानूनों में घोषित संज्ञेय अपराध भी इस प्रवर्ग में सामिल होते है, जैसे की महाराष्ट्र राज्य में स्कूलोंद्वारा निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्कवसूली के कृत्य को महाराष्ट्र शैक्षिक संस्थान विनियमन अधिनियम २०११ अंतर्गत संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) घोषित किया गया है. पुलिस ऐसे मामलों में बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है. पुलिस एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) संबंधित व्यक्ति को दर्ज कराने के बाद तुरंत और नि: शुल्क उपलब्ध कराने ले लिए बाध्य है.
ii) असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable offence)-
इस प्रवर्ग में साधारण चोट, उपद्रव, जैसे संज्ञेय अपराध के तुलना में मामूली अपराध सामिल होते है. ऐसे मामलों में अदालत से अनुमति के बिना पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर सकती.
४. आपराधिक शिकायत दर्ज करने के बाद एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करनेलिए कानूनी कार्रवाई करने से पहले इन प्रक्रिया का पालन करना चाहिए- (Must follow process before proceeding to take legal action to lodge an FIR post criminal complaint)-
*यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट कोर्ट या उपयुक्त आयोगों या पुलिस शिकायत प्राधिकरण के समक्ष जाने से पहले निम्नलिखित कदम उठाए-
i) पुलिस विभाग को लिखित शिकायत और इसकी पुष्टि (Written Complaint to The Police Department and It’s Acknowledgement)-
अधिकांश समय ऐसा होता है कि पुलिस विभाग न केवल एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करने से इनकार कर देता है बल्कि शिकायत और उसकी पावती देने से भी इनकार कर देता है. इन परिस्थितियों में आम लोगों को संबंधित पुलिस स्टेशन को लिखित आवेदन करना चाहिए और उस के पावती के लिए आग्रह करना चाहिए जिसमें पुलिस विभाग की मुहर शामिल हो, समय के साथ तारीख का विवरण और साथ ही इस उद्देश्य के लिए प्रतिनियुक्त संबंधित पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर भी हों.
*यह महत्वपूर्ण है कि यदि पुलिस विभाग शिकायतकर्ता को लिखित शिकायत की पावती देने से इनकार करता है, तो शिकायत की प्रती तुरंत संबंधित पुलिस अधिकारी को ईमेल के साथ ही पोस्ट ऑफिस के रजिस्टर्ड एडी सिस्टम के माध्यम से तुरंत भेजें.
ii) अदालतों या आयोगों में याचिका करने से पहले पुलिस अधीक्षक और अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शिकायतें आवश्यक (Complaints to Superintendent of Police & Other Senior Police Officers is Must Before Moving to Courts or Commissions)-
सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि संबंधित पुलिस स्टेशन या पुलिस अधिकारी के समक्ष आपराधिक शिकायत प्रस्तुत करने के बाद भी, शिकायत की प्रति वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिसमे कम से कम पुलिस अधीक्षक और उसके ऊपर के के रैंक के अधिकारी के कार्यालय में अग्रेषित की जानी चाहिए, अन्यथा संबंधित न्यायालय, आयोग या प्राधिकरण संज्ञान लेने से इनकार कर सकते हैं और इस तरह के मामले में कीमती समय खो जाता है.
*५. एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) या आपराधिक मुकदमा कैसे दर्ज करें? अदालत तथा आयोगसमक्ष प्रक्रियाओंसंबंधी मार्गदर्शन-(Hindi Article-Legal remedies for how to get FIR lodged through Courts & Commissions)-
जैसा कि उपरोक्त संदर्भ दिया है इसके २ दो महत्वपूर्ण कानूनी उपाय निम्लिखित-
i) संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (S.156 of The Code of Criminal Procedure 1973) की धारा १५६(३) के तहत निजी शिकायत दर्ज करना (वकील को नियुक्त कर के या उसके बिना)-
अधिकांश लोग इस तथ्य को नहीं जानते हैं कि अगर पुलिस प्रशासन ने आपराधिक शिकायत का संज्ञान नहीं लिया तो वे स्थानीय मजिस्ट्रेट अदालत में दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ (S.156 of The Code of Criminal Procedure 1973) की धारा १५६(३) के तहत शिकायत दर्ज कर सकते है जिसे ‘निजी शिकायत’ (Private Complaint) के रूप में जाना जाता है. ज्यादातर मामलों में अगर मजिस्ट्रेट अदालत अपराध और उसकी जांच की आवश्यकता के बारे में प्रथम दृष्टया संतुष्ट हो तो दिनों या हफ़्तों के भीतर ही पुलिस प्रशासन को एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करने का निर्देश दे सकती है.
मजिस्ट्रेट अदालतों के आदेशों के तुरंत बाद पुलिस प्रशासन कानूनी रूप से एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करने के लिए बाध्य है, और अगर मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के बाद भी कोई एफआईआर (FIR-First Information Report) यानी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है, तो ऐसे पुलिस अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है.
*ii) वकील या अधिवक्ता की नियुक्ति कितनी जरुरी?-
निःसंदेह आम लोग वकील या अधिवक्ता की नियुक्ति किये बिना मजिस्ट्रेट न्यायलय में याचिका या शिकायत दर्ज कर सकते है. दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ की धारा १५६(३) का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह स्थानीय मजिस्ट्रेट से संपर्क करने के लिए किसी भी जटिल कानूनी प्रारूप या प्रक्रिया को निर्दिष्ट नहीं करता है! इसलिए आम लोग सीधे मजिस्ट्रेट के पास सरल आपराधिक शिकायत आवेदन के साथ भी संपर्क कर सकते हैं. हालाँकि इस तरह के अनुप्रयोगों को अस्वीकार कर दिया जा सकता है यदि वे उचित सावधानी के साथ दायर नहीं किए जाते हैं. इसलिए मैं अपील करता हूँ कि वे निम्नलिखित लेख को जरुर पढ़ें, जो मैं मानता हूँ कि अगर निम्नलिखित प्रारूप के तहत आम लोगों द्वारा शिकायतें दर्ज की जाती हैं, तो अनुकूल आदेश प्राप्त करने का अनुपात दर में काफी वृद्धि होगी.
उपर्युक्त संदर्भीय लेख का लिंक इस प्रकार है-
अदालत तथा न्यायालय और विभिन्न आयोग में शिकायत कैसे दर्ज करें क़ानूनी मसौदा संलग्न
महत्वपूर्ण सूचना- हम स्पष्ट करते हैं कि वकील या अधिवक्ता को नियुक्त किये बिना मामलों को न्यायालयों में दाखिल करना जहाँ तक संभव हो विशेष रूप से आपराधिक मामलों में टाला जाना चाहिए. और यह तभी करें जब अपरिहार्य कारण रहे. यहां तक कि वकील या अधिवक्ता नियुक्त ना करने के अपरिहार्य कारण हो फिर भी आपराधिक मामला दर्ज करते समय, शिकायतकर्ता को वकीलों के साथ पूर्व परामर्श करना चाहिए क्योंकि उसकी वजह से अधिकांश तकनीकी तथा वैधानिक त्रुटियों को दूर किया जा सकता है और चूँकि आप केवल परामर्श ले रहे है तो उसका शुल्क भी नाममात्र ही लगेगा.
ii) विभिन्न आयोगों और पुलिस शिकायत प्राधिकरण के समक्ष शिकायतें दर्ज करके (By filing complaints before the various Commissions & the Police Complaints Authorities)–
आम लोग कई आयोगों समक्ष जैसे कि मानवाधिकार आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, महिला आयोग आदि में याचिका या शिकायत दाखिल कर सकते है. और इसके अलावा जो अधिकांश लोग जिसके बारे में जानते ही नहीं है ऐसे पुलिस शिकायत प्राधिकरण के समक्ष भी शिकायत कर सकते है. वर्ष २००६ में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद पुलिस शिकायत प्राधिकरण जिसके प्रमुख सामान्य तौर पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते है उसकी स्थापना हर जिला और राज्य स्तर पर देशभर में सभी राज्यों को करना अनिवार्य कर दिया गया है. उसके बारे में अधिक जानकारी के लिए लेख का लिंक इस प्रकार है-
राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण- पुलिस भ्रष्टाचार, कदाचार तथा अकार्यक्षमता के खिलाफ न्यायसंस्था
*यहाँ भी मैं विभिन्न आयोगों और पुलिस शिकायत प्राधिकरण के समक्ष निम्नलिखित लेखनुसार ही शिकायत दाखिल करने की सलाह दूंगा-
अदालत तथा न्यायालय और विभिन्न आयोग में शिकायत कैसे दर्ज करें क़ानूनी मसौदा संलग्न
मुझे विश्वास कि यदि लोग उपरोक्त क़ानूनी उपायों का पूरी तरह से उपयोग करते हैं, तो वे ऐसे मामलों में खुद क़ानूनी लड़ाई लड़कर एफआईआर (FIR-First Information Report) दर्ज करवा सकते हैं जहां पुलिस प्रशासन संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) के प्रथम दृष्टया तथ्य और सबूत होने के बावजूद एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट- प्राथमिकी (FIR-First Information Report) दर्ज करने के लिए इनकार कर देता है या झूठे और भ्रामक आधार के बहाने कर देरी करता है …जयहिंद!
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